अब अपने घर पे हि शुद्ध पर्यावरण एवं ताज़ा सब्जियों का मजा ले सकते है आप.
डाक्टर स्वपन दत्ता बताते हैं कि वर्टिकल फार्मिंग से खाने- पीने की चीजें सस्ती हो जाएंगी, सारे साल फल-सब्जियाँ उगाई जा सकेंगी और इससे कीटनाशकों का इस्तेमाल कम हो जाएगा जिसका फायदा हमारी सेहत और पर्यावरण को होगा, काफी हद तक खाद्य संकट भी खत्म हो पाएगा. उन्होंने बताया, बड़े पैमाने पर अगर ये होगा तो खाने-पीने के समान का दाम भी कम हो जाएगा. सारे साल आलू, टमाटर और पत्तेदार सब्ज़ियां आदि उगाई जा सकेंगी और परिवहन का खर्चा कम हो जाएगा. और जो ज़मीन खेती के लायक नहीं है, उस पर इस तरह की इमारतें बनाकर खेती की जा सकती है. आज शहरों में रहने के लिए जो इमारते बन रही हैं, उनमें भी कुछ मंज़िलें इस काम के लिए इस्तेमाल की जा सकती हैं. ये देखने में भी अच्छा लगेंगी, और सिंचाई के पानी के लिए रेनवॉटर हार्वेस्टिंग हो सकती है.”
सेम पित्रोदा वो इन्सान है जिन्होंने दशकों पहले भारत में टेलिफोन को सरकारी दफ्तरों और बड़े लोगों के घरों से निकल कर एस टी डी- पी सी ओ के जरिये भारत कि गली गाँव गाँव में पहुंचा दिया था. सेम पित्रोदा अब वर्टिकल फार्मिंग के जरिये भारत में खाद्य संकट मिटाने के साथ – साथ शुद्ध पर्यावरण कि वकालत कर रहे हैं. वर्टिकल फार्मिंग आम तौर पर बिना मिट्टी के की जाती है, जिसे करने का तरीका है हाईद्रोपोनिक्स जिसमे पोधे को उगने के लिए पानी में ही उसके आवश्यक तत्व पर्दान किए जाते हैं, जिससे पोधे का विकास संभव है. सैम पित्रोदा मानते हैं कि भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश को न सिर्फ़ रहने के लिए बल्कि खेती के लिए भी बहुमंज़िली इमारतों का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि खाली ज़मीन वन, खेल के मैदान, पार्क आदि के लिए इस्तेमाल की जाती है.
मेरे पूर्वज खेती का काम करते थे और मेरे परिवार में बहुत सारे लोग खेती का काम करते हैं. मै वर्टिकल फार्मिंग के तथ्य से काफी हद तक सहमत हूँ. इसमें मेरा मानना ये है कि वर्तमान में हम संपोष्य विकास की बात करते हैं उसके आधार पर भी यह तथ्य सटीक बैठता है. मुझे सबसे मजेदार बात तो यह लगी कि भारत जेसे देश में गृहिणियों को कोई काम नही होता जिसकी वजह से वो अपनी मानसिक और शारीरिक शक्ति का इस्तेमाल नही कर पाती, खास तौर पर उनके लिए यह सुनहरा अवसर है अपनी शक्ति का सही दिशा में इस्तेमाल करने का. यह मेरा व्यक्तिगत विचार है.
लेखक // शैलेन्द्र कुमार राजस्थान से है. वह GIS और पर्यावरण में रुचि रखते है. बीएचयू से एमएससी पूरा कर लिया है. पंजाबी गाना पसंद है.
निर्देश
- बीबीसी
- NASA (तस्वीर)
"मैं वर्टिकल फ़ार्मिंग की वक़ालत करूंगा. यानी ज़मीन पर खेती करने की जगह ऊंची-ऊंची इमारतों में खेती." - बीबीसीसोचिये अगर आपको सब्जी लेने बाजार ना जाना पड़े, और आपके आस-पास का पर्यावरण शुद्ध भी रहे, ताजुब हो रहा होगा कि ये कैसे हो सकता है ? लेकिन यह सचाई है. जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ वर्टिकल फार्मिंग कि जिसका मतलब है बड़ी बड़ी इमारतों पे खेती करना, फल-सब्जियाँ उगाना. आप सोच रहे होंगे कि यह भविष्य कि तकनीक है, नहीं आप गलत सोच रहें है क्योंकि ऐसा मोजूदा समय में हो रहा है . अमेरिका, चीन, मलेशिया और सिंगापुर जेसे देशों में शुरू भी हो चूका है. इससे हमारा पर्यावरण भी शुद्ध रहेगा और हमे सब्जियाँ खरीदने बाजार भी नहीं जाना पड़ेगा और इसके पुरे राष्ट्र स्तर भी बहुत सारे फायदे हो रहे है जो कि सैम या सत्यनारायण गंगा राम पित्रोदा और आई सी ऐ आर के उपमहानिदेशक डाक्टर स्वपन दत्ता बता रहें है.
बिना मिट्टी के खेती करने का तरीका हाइड्रोपोनिक्स कहलाता है. (तस्वीर: NASA) |
डाक्टर स्वपन दत्ता बताते हैं कि वर्टिकल फार्मिंग से खाने- पीने की चीजें सस्ती हो जाएंगी, सारे साल फल-सब्जियाँ उगाई जा सकेंगी और इससे कीटनाशकों का इस्तेमाल कम हो जाएगा जिसका फायदा हमारी सेहत और पर्यावरण को होगा, काफी हद तक खाद्य संकट भी खत्म हो पाएगा. उन्होंने बताया, बड़े पैमाने पर अगर ये होगा तो खाने-पीने के समान का दाम भी कम हो जाएगा. सारे साल आलू, टमाटर और पत्तेदार सब्ज़ियां आदि उगाई जा सकेंगी और परिवहन का खर्चा कम हो जाएगा. और जो ज़मीन खेती के लायक नहीं है, उस पर इस तरह की इमारतें बनाकर खेती की जा सकती है. आज शहरों में रहने के लिए जो इमारते बन रही हैं, उनमें भी कुछ मंज़िलें इस काम के लिए इस्तेमाल की जा सकती हैं. ये देखने में भी अच्छा लगेंगी, और सिंचाई के पानी के लिए रेनवॉटर हार्वेस्टिंग हो सकती है.”
सेम पित्रोदा वो इन्सान है जिन्होंने दशकों पहले भारत में टेलिफोन को सरकारी दफ्तरों और बड़े लोगों के घरों से निकल कर एस टी डी- पी सी ओ के जरिये भारत कि गली गाँव गाँव में पहुंचा दिया था. सेम पित्रोदा अब वर्टिकल फार्मिंग के जरिये भारत में खाद्य संकट मिटाने के साथ – साथ शुद्ध पर्यावरण कि वकालत कर रहे हैं. वर्टिकल फार्मिंग आम तौर पर बिना मिट्टी के की जाती है, जिसे करने का तरीका है हाईद्रोपोनिक्स जिसमे पोधे को उगने के लिए पानी में ही उसके आवश्यक तत्व पर्दान किए जाते हैं, जिससे पोधे का विकास संभव है. सैम पित्रोदा मानते हैं कि भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश को न सिर्फ़ रहने के लिए बल्कि खेती के लिए भी बहुमंज़िली इमारतों का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि खाली ज़मीन वन, खेल के मैदान, पार्क आदि के लिए इस्तेमाल की जाती है.
मेरे पूर्वज खेती का काम करते थे और मेरे परिवार में बहुत सारे लोग खेती का काम करते हैं. मै वर्टिकल फार्मिंग के तथ्य से काफी हद तक सहमत हूँ. इसमें मेरा मानना ये है कि वर्तमान में हम संपोष्य विकास की बात करते हैं उसके आधार पर भी यह तथ्य सटीक बैठता है. मुझे सबसे मजेदार बात तो यह लगी कि भारत जेसे देश में गृहिणियों को कोई काम नही होता जिसकी वजह से वो अपनी मानसिक और शारीरिक शक्ति का इस्तेमाल नही कर पाती, खास तौर पर उनके लिए यह सुनहरा अवसर है अपनी शक्ति का सही दिशा में इस्तेमाल करने का. यह मेरा व्यक्तिगत विचार है.
निर्देश
- बीबीसी
- NASA (तस्वीर)
0 comments